l भृगु संहिता:
गुरु भृगु और शिष्य शुक्राचार्य के बीच संवाद रूप में रचना।
l नाड़ी पट्टी:
व्यक्ति से संवाद (कभी-कभी शिष्य ग्रह-तारों की स्थिति के आधार पर प्रश्न पूछकर संवाद करता है)।
l खोजने की विधि:
नाड़ी पट्टी: व्यक्ति के हाथ के अंगूठे के निशान से खोजी जाती है। जन्म ग्रहदशा (कुंडली) तैयार मिलती है।
भृगु संहिता: कुंडली की सहायता से खोजी जाती है (पंजाबी में इसे 'टेवा' कहा जाता है)।
l जानकारी:
नाड़ी पट्टी: इसमें माता-पिता, पति-पत्नी और स्वयं का नाम, जन्म तिथि, शिक्षा, नौकरी-व्यवसाय आदि का स्पष्ट उल्लेख होता है।
भृगु संहिता: इसमें हमेशा जानकारी का उल्लेख हो, ऐसा आवश्यक नहीं होता।
l ग्राहकों की सुविधा:
नाड़ी पट्टी: नाड़ी पट्टी का लेखन तमिल भाषा में कॉपी में दिया जाता है। हिंदी अनुवाद की कैसेट या मोबाइल पर वीडियो रिकॉर्डिंग देने की व्यवस्था होती है।
भृगु संहिता: संहिता की कॉपी या अनुवाद की कैसेट देने की कोई व्यवस्था नहीं होती। भृगु पत्रों के फोटो खींचने या कार्बन टेस्ट करने की अनुमति शास्त्री नहीं देते।
l संरक्षण:
ताड़पत्र: पुराने होने के बावजूद उस पर खुदा हुआ लेखन मिटता नहीं है।
संहिता: कागज पुराना होने और स्याही का रंग उड़ने से लेखन अस्पष्ट हो सकता है।